क्या है हार्डवेयर-नेटवर्किग?
कम्प्यूटर की दुनिया में मुख्य रूप से दो तरह का काम होता है-पहला सॉफ्टवेयर का, जिसकी मदद से कम्प्यूटर काम करता है और दूसरा, हार्डवेयर का, जो कम्प्यूटर की मशीनरी होता है। इसमें मुख्य रूप से सीपीयू यानी हार्ड डिस्क, मदर बोर्ड, मॉनीटर, माउस आदि होते हैं, जिनकी मदद से कम्प्यूटर को ऑपरेट किया जाता है। नेटवर्किग के तहत एक जगह के कम्प्यूटर को उसी जगह या किसी अन्य शहर या देश में स्थित कम्प्यूटरों से जोडा जाता है, ताकि उनके डाटा आपस में शेयर किए जा सकें। नेटवर्किग का काम मुख्यत: तीन तरह से किया जाता है-लैन यानी लोकल एरिया नेटवर्क, सैन यानी मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क और वैन यानी वाइड एरिया नेटवर्क के माध्यम से। पूरी दुनिया में सॉफ्टवेयर डेवलॅपमेंट के लिए भारत का नाम है। ऐसी तमाम कंपनियां हैं, जिन्होंने ग्लोबल लेवॅल पर पहचान बनाई है। इनमें टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, सत्यम, एचसीएल आदि प्रमुख हैं। संस्थान कैसा हो?
कहीं भी एडमिशन लेते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वहां लेटेस्ट तकनीक से ट्रेनिंग दी जा रही है या नहीं। इसके अलावा यह भी देखें कि वहां लैन, वैन के साथ-साथ MCSE CCNA जैसी अत्याधुनिक ट्रेनिंग की सुविधा है या नहीं, मार्केट में अब MCSE CCNA की जानकारों की ही डिमांड है। हार्डवेयर की ट्रेनिंग दो तरह की होती है-कार्ड लेवॅल की और चिप लेवॅल की। कार्ड लेवॅल में जहां कम्प्यूटर के खराब पार्ट को ही बदल दिया जाता है, वहीं अपडेटेड चिप लेवॅल में उस पार्ट की खराबी दूर की जाती है। ऐसे में चिप लेवॅल का कोर्स करना ही बेहतर होगा। ऐसा कोर्स करीब डेढ वर्ष की अवधि का है। जरूरी योग्यता
हार्डवेयर-नेटवर्किग के कोर्स में एडमिशन के लिए कम से कम बारहवीं उत्तीर्ण होना चाहिए। साइंस बैकग्राउंड और कम्प्यूटर की बेसिक नॉलेज रखने वाले छात्रों को थोडा सुविधा होती है, हालांकि आर्ट्स स्ट्रीम के छात्र भी यह कोर्स आसानी से कर सकते हैं।